झारखंड के स्तंभ Shibu Soren नहीं रहे, सीएम हेमंत बोले – ‘सबसे कठिन दौर से गुजर रहा हूं’

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Shibu Soren, जिन्हें झारखंड और देशभर में ‘गुरुजी’ के नाम से जाना जाता है, अब हमारे बीच नहीं रहे। उनका निधन एक ऐसा क्षण है, जिसने झारखंड की आत्मा को झकझोर दिया है। वे केवल एक राजनेता नहीं थे, बल्कि झारखंडी अस्मिता, आदिवासी चेतना और जन आंदोलन के सबसे बड़े प्रतीक थे। उनके निधन पर उनके पुत्र और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा,
“मैं अपने जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजर रहा हूं, झारखंड की आत्मा का एक स्तंभ चला गया।”

यह लेख Shibu Soren के जीवन, संघर्ष, उपलब्धियों और उनकी अनुपस्थिति से उपजे सामाजिक-राजनीतिक असर का समग्र विश्लेषण करता है।

Shibu Soren: प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि

  • जन्म: 11 जनवरी 1944, नेमरा गाँव, रामगढ़ जिला (अब झारखंड)
  • जातीय पहचान: संथाल आदिवासी समुदाय
  • व्यक्तिगत पीड़ा: बचपन में ही उनके पिता की जमींदारों द्वारा हत्या कर दी गई थी — यह घटना उनके सामाजिक जागरण की प्रेरणा बनी।

Shibu Soren ने अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ दी, लेकिन जीवनभर आदिवासी समाज के अधिकारों के लिए संघर्ष करते रहे। उन्होंने जमींदारी प्रथा, शोषण और विस्थापन के खिलाफ आवाज उठाई।

Shibu Soren और झारखंड आंदोलन

JMM की स्थापना

1972 में Shibu Soren ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की। उनका उद्देश्य था:

  • आदिवासी अधिकारों की रक्षा
  • जल, जंगल, जमीन पर स्थानीय समुदाय का हक
  • झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाना

Shibu Soren ने हजारों युवाओं और ग्रामीणों को संगठित किया और झारखंड को आंदोलन से राज्य बनने तक का सफर तय करवाया।

सांसद और मंत्री के रूप में Shibu Soren का योगदान

Shibu Soren ने राजनीति में आने के बाद कई बार लोकसभा चुनाव जीते और केंद्रीय मंत्री बने:

  • कोयला मंत्री के रूप में नीतिगत सुधार लाए
  • आदिवासी कल्याण और शिक्षा को प्रोत्साहन दिया
  • भूमि अधिग्रहण और विस्थापन विरोधी रुख बनाए रखा

उनकी सादगी, संघर्षशील छवि और जमीनी जुड़ाव ने उन्हें जनता का प्रिय नेता बना दिया।

Shibu Soren का मुख्यमंत्री पद और विवादों का सामना

Shibu Soren तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने। हालाँकि उनके कार्यकाल विवादों और गठबंधन के उतार-चढ़ाव से भरे रहे, फिर भी उन्होंने विकास और अधिकारों को प्राथमिकता दी।

उन्हें कुछ आपराधिक मामलों का भी सामना करना पड़ा, लेकिन वे इनसे उबरकर राजनीति में फिर लौटे और जनता का भरोसा बरकरार रखा।

Shibu Soren को ‘गुरुजी’ क्यों कहा जाता था?

Shibu Soren को आदिवासी समाज में ‘गुरुजी’ इसीलिए कहा जाता था क्योंकि:

  • वे जीवनभर मार्गदर्शक की भूमिका में रहे
  • उनका जीवन आदिवासी संघर्षों की मिसाल था
  • वे सामाजिक सुधार और सांस्कृतिक पहचान के प्रहरी थे

उनके भाषण, हावभाव, और सोच आम जनता में भरोसे का प्रतीक बन चुके थे।

Shibu Soren के निधन पर शोक की लहर

हेमंत सोरेन की प्रतिक्रिया

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ट्विटर पर लिखा:

“मेरे पिताजी नहीं रहे। मेरे जीवन का स्तंभ, मेरे संघर्ष का साथी चला गया। यह मेरे लिए व्यक्तिगत और सार्वजनिक दोनों स्तर पर अपूर्णीय क्षति है।”

राजकीय सम्मान और अंतिम संस्कार

  • झारखंड सरकार ने 3 दिन का राजकीय शोक घोषित किया
  • उनके पार्थिव शरीर को JMM मुख्यालय और रांची विधानसभा में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया
  • हजारों की भीड़ ने ‘गुरुजी’ को अंतिम विदाई दी

राष्ट्रीय नेताओं और संगठनों की श्रद्धांजलि

  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने Shibu Soren को “जनजातीय समाज के सच्चे प्रतिनिधि” बताया
  • राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति ने भी गहरा शोक व्यक्त किया
  • कांग्रेस, वामपंथी दलों, और क्षेत्रीय दलों ने भी उनके योगदान को ऐतिहासिक बताया

Shibu Soren की राजनीतिक विरासत

JMM की कमान अब किसके हाथ में?

हालांकि हेमंत सोरेन पहले से ही पार्टी और सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं, लेकिन Shibu Soren की अनुपस्थिति अब पार्टी को वैचारिक और नैतिक मार्गदर्शन से वंचित कर सकती है।

राज्य की राजनीति पर असर

  • Shibu Soren के निधन से झारखंड की राजनीति में भावनात्मक लहर
  • विपक्षी दलों को भी उनके सम्मान में अपने राजनीतिक मतभेदों को कुछ समय के लिए विराम देना पड़ा
  • आदिवासी समाज में नेतृत्व के नए चेहरों की तलाश शुरू

जनता का जुड़ाव और सामाजिक प्रभाव

Shibu Soren आम लोगों के नेता थे। गांव-गांव में उनके लिए:

  • कैंडल मार्च
  • श्रद्धांजलि सभाएं
  • स्कूलों में मौन धारण
  • सामाजिक संगठनों द्वारा विशेष आयोजन किए गए

झारखंड की जनता उन्हें “झारखंड की आत्मा” मानती रही।

Shibu Soren: एक आदर्श, एक युग

उनके निधन से सिर्फ एक नेता का नहीं, बल्कि एक पूरे युग का अंत हो गया है। Shibu Soren जैसे नेता विरले होते हैं:

  • जो आंदोलन से राजनीति में आते हैं
  • सत्ता में रहकर भी जनसंघर्षों से जुड़े रहते हैं
  • और जिनका नाम बोलते ही जनता के मन में श्रद्धा का भाव आ जाता है

निष्कर्ष

Shibu Soren सिर्फ झारखंड के नहीं, पूरे भारत के आदिवासी समाज के प्रेरणास्त्रोत थे। उनके निधन से झारखंड की राजनीति, सामाजिक चेतना और आंदोलनकारी भावना को गहरा आघात पहुँचा है।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का बयान — “सबसे कठिन दौर से गुजर रहा हूं” — इस निजी और सार्वजनिक क्षति को पूरी गहराई से अभिव्यक्त करता है।

अब झारखंड की नई पीढ़ी की जिम्मेदारी है कि वह Shibu Soren की विरासत को जिंदा रखे, आदिवासी संस्कृति और अधिकारों की रक्षा करे और ‘गुरुजी’ के अधूरे सपनों को पूरा करे।

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

Q1. Shibu Soren कौन थे?

उत्तर: Shibu Soren झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के संस्थापक, तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री और कई बार केंद्रीय मंत्री रहे। वे झारखंड आंदोलन के जनक और आदिवासी समाज के प्रतीक माने जाते थे।

Q2. Shibu Soren को ‘गुरुजी’ क्यों कहा जाता था?

उत्तर: आदिवासी समाज में उन्होंने मार्गदर्शक की भूमिका निभाई और जन-चेतना को जगाया, इसलिए उन्हें स्नेहपूर्वक ‘गुरुजी’ कहा जाता था।

Q3. Shibu Soren का निधन कब और कैसे हुआ?

उत्तर: Shibu Soren का निधन लंबी बीमारी के बाद हुआ। उन्होंने रांची में अंतिम सांस ली। राज्य सरकार द्वारा राजकीय शोक की घोषणा की गई।

Q4. Shibu Soren के निधन पर हेमंत सोरेन ने क्या कहा?

उत्तर: हेमंत सोरेन ने उन्हें ‘झारखंड की आत्मा’ बताते हुए कहा कि वह अपने जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजर रहे हैं।

Q5. Shibu Soren की राजनीतिक विरासत कौन संभालेगा?

उत्तर: फिलहाल उनके पुत्र हेमंत सोरेन JMM और झारखंड सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। लेकिन Shibu Soren की वैचारिक और नैतिक भूमिका की भरपाई आसान नहीं है।

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