बिहार में विशेष पुनरीक्षण अभियान: बाढ़ में गुम हुए दस्तावेज़, बीएलओ पर बढ़ा दबाव, मतदाता सूची से नाम कटने की आशंका

बिहार में इस समय मतदाता सूची के विशेष इंटेंसिव रिवीजन अभियान (Special Intensive Revision) की प्रक्रिया जारी है। यह अभियान हर पांच वर्षों में एक बार किया जाता है, ताकि मतदाता सूची को अद्यतन किया जा सके और नए मतदाताओं को जोड़ा जा सके। हालांकि इस बार हालात कुछ अलग हैं – राज्य के कई ज़िलों में आई बाढ़ ने इस प्रक्रिया को गहरा प्रभावित किया है। बाढ़ में लोगों के दस्तावेज़ बह गए हैं, बीएलओ (Booth Level Officers) पर काम का भारी दबाव है और मतदाताओं को अपने नाम कटने की चिंता सता रही है।

बाढ़ की मार और मतदाता सूची का संकट
बाढ़ से प्रभावित ज़िलों में दस्तावेज़ों का नुकसान
बिहार के मुज़फ्फरपुर, दरभंगा, समस्तीपुर, पूर्णिया, कटिहार, सुपौल और अररिया जैसे ज़िलों में बाढ़ ने भारी तबाही मचाई है। कई गाँवों में लोग अपने घर छोड़कर ऊँचे स्थानों पर शरण लिए हुए हैं। इस आपदा में न केवल मकान और अनाज नष्ट हुए, बल्कि नागरिकों के महत्वपूर्ण दस्तावेज़ जैसे – आधार कार्ड, राशन कार्ड, और वोटर आईडी भी बह गए या नष्ट हो गए।

इन दस्तावेज़ों के बिना नए मतदाताओं के लिए फॉर्म भरना मुश्किल हो रहा है, वहीं जिन लोगों का नाम पहले से सूची में है, वे दस्तावेज़ की कमी के कारण संशोधन या पुष्टिकरण नहीं करवा पा रहे हैं।

बीएलओ की चुनौतियाँ
बूथ स्तर के अधिकारी यानी बीएलओ पर इस अभियान को सफल बनाने की जिम्मेदारी है। लेकिन बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बीएलओ के सामने भारी चुनौतियाँ हैं:

गाँवों तक पहुँचना मुश्किल

नागरिकों से संपर्क स्थापित करना कठिन

दस्तावेज़ों की अनुपलब्धता

रोज़ाना रिपोर्टिंग का दबाव

एक बीएलओ ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया, “हम नाव से भी गाँवों तक पहुँचने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन लोग डरे हुए हैं कि अगर वे समय पर दस्तावेज़ नहीं दे पाए, तो उनका नाम मतदाता सूची से कट सकता है।”

नाम कटने का डर और लोगों की प्रतिक्रिया
नागरिकों में चिंता
कई लोगों को डर है कि अगर वे पुनरीक्षण के दौरान दस्तावेज़ प्रस्तुत नहीं कर पाए, तो उनका नाम अगली मतदाता सूची से हटा दिया जाएगा। यह डर खासकर वृद्ध, महिला और दिव्यांग मतदाताओं में ज्यादा है, जो खुद से फॉर्म भरने या आवेदन करने की स्थिति में नहीं हैं।

दरभंगा की एक 65 वर्षीय महिला ने बताया, “मेरे वोटर कार्ड और आधार कार्ड दोनों बाढ़ में बह गए। बीएलओ कुछ पूछते हैं, लेकिन मेरे पास कोई काग़ज़ नहीं बचा। अब तो डर लग रहा है कि अगली बार वोट नहीं डाल पाऊंगी।”

राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया
राजनीतिक दलों ने भी इस मामले में अपनी चिंता जाहिर की है। विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग से अनुरोध किया है कि बाढ़ प्रभावित ज़िलों के लिए विशेष छूट दी जाए और प्रक्रिया को लचीला बनाया जाए।

एक क्षेत्रीय पार्टी के प्रवक्ता ने कहा, “यह बेहद ज़रूरी है कि आयोग मानवीय दृष्टिकोण से काम करे। लोगों को नाम कटने की चिंता से मुक्त किया जाए और काग़ज़ात के बिना भी विकल्प उपलब्ध कराए जाएं।”

निर्वाचन आयोग की प्रतिक्रिया
ईसीआई द्वारा विशेष निर्देश
चुनाव आयोग (ECI) ने इस पर संज्ञान लेते हुए बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लिए कुछ विशेष निर्देश जारी किए हैं:

दस्तावेज़ों में लचीलापन: यदि मूल दस्तावेज़ उपलब्ध नहीं हैं, तो उसके स्थान पर वैकल्पिक पहचान प्रमाण स्वीकार किए जाएं।

फील्ड वेरिफिकेशन पर ज़ोर: बीएलओ को निर्देश दिया गया है कि वे स्वयं जाकर पहचान सुनिश्चित करें।

मोबाइल एप आधारित समाधान: कुछ ज़िलों में ‘Voter Helpline’ मोबाइल एप के ज़रिए खुद से फॉर्म भरने की सुविधा दी गई है।

मतदाता सूची की समयसीमा
विशेष पुनरीक्षण अभियान की प्रक्रिया जुलाई 1 से शुरू होकर अगस्त के अंत तक चलेगी। इस दौरान:

Form 6: नए मतदाताओं के लिए

Form 7: नाम हटाने या आपत्ति के लिए

Form 8: विवरण सुधारने के लिए

उम्मीद की जा रही है कि अभियान समाप्त होने के बाद 15 जनवरी 2026 तक फाइनल मतदाता सूची प्रकाशित कर दी जाएगी।

बीएलओ की स्थिति: बोझ और असंतोष
काम का बढ़ता बोझ
बीएलओ राज्य की चुनावी मशीनरी की रीढ़ हैं, लेकिन अक्सर इन्हें न तो पर्याप्त संसाधन मिलते हैं, न ही तकनीकी सहायता। इस बार बाढ़ और पुनरीक्षण अभियान के कारण स्थिति और भी विकट हो गई है।

एक बीएलओ को औसतन 1,000–1,200 मतदाताओं का डेटा अपडेट करना होता है।

अधिकांश बीएलओ शिक्षक या सरकारी कर्मचारी होते हैं जिन्हें नियमित कामों के साथ यह अतिरिक्त ज़िम्मेदारी निभानी पड़ती है।

ग्राउंड रियलिटी
ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी की कमी, मोबाइल एप में तकनीकी खामियाँ और भाषा की बाधा भी बीएलओ के काम में रुकावटें पैदा कर रही हैं।

एक बीएलओ ने बताया, “कभी एप काम नहीं करता, कभी सर्वर डाउन रहता है। ऊपर से रोज़ रिपोर्ट भेजने की डेडलाइन होती है। ये बहुत तनावपूर्ण स्थिति है।”

समाधान और संभावनाएँ
डिजिटल विकल्पों का विस्तार
यदि डिजिटल प्रणाली को सही ढंग से लागू किया जाए, तो यह लोगों और बीएलओ दोनों के लिए सहायक हो सकती है। उदाहरण के लिए:

ई-केवाईसी के ज़रिए पहचान की पुष्टि

व्हाट्सएप हेल्पलाइन से फॉर्म डाउनलोड/अपलोड की सुविधा

CSC केंद्रों पर नामांकन की सुविधा

सामुदायिक भागीदारी
पंचायत स्तर पर स्थानीय स्वयंसेवी संगठनों की मदद से मतदाता जागरूकता अभियान चलाए जाएं। बाढ़ राहत शिविरों में मोबाइल बूथ लगाए जाएं, जिससे वहाँ रह रहे लोग भी फॉर्म भर सकें।

निष्कर्ष
बिहार में विशेष मतदाता पुनरीक्षण अभियान इस बार चुनौतीपूर्ण हालात में हो रहा है। बाढ़ ने दस्तावेज़ों को नष्ट कर दिया है, बीएलओ पर दबाव बढ़ा है और लोगों में नाम कटने की आशंका घर कर गई है। चुनाव आयोग को ज़मीनी सच्चाई के अनुसार लचीलापन अपनाना होगा, और तकनीकी व प्रशासनिक सहायता को मजबूत करना होगा। यदि इन समस्याओं को समय रहते हल नहीं किया गया, तो लाखों लोगों का लोकतांत्रिक अधिकार प्रभावित हो सकता है।

FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले सवाल)

  1. क्या दस्तावेज़ के बिना भी नामांकन किया जा सकता है?
    हाँ, चुनाव आयोग ने विशेष परिस्थिति में वैकल्पिक पहचान प्रमाण की अनुमति दी है। बीएलओ द्वारा फील्ड वेरिफिकेशन के ज़रिए भी नामांकन हो सकता है।
  2. मतदाता सूची से नाम कटने से कैसे बचें?
    Form 6 के माध्यम से समय रहते आवेदन करें और उपलब्ध कोई भी पहचान प्रमाण प्रस्तुत करें। बीएलओ से संपर्क बनाए रखें।
  3. बाढ़ से प्रभावित लोग फॉर्म कहाँ जमा करें?
    यदि गाँव में बीएलओ तक पहुँचना संभव नहीं है, तो नज़दीकी बीएलओ कार्यालय, CSC केंद्र या Voter Helpline App का उपयोग करें।
  4. बीएलओ को किन-किन दस्तावेज़ों की आवश्यकता होती है?
    आमतौर पर पहचान (आधार कार्ड, राशन कार्ड, वोटर आईडी) और पते का प्रमाण (बिजली बिल, बैंक पासबुक) माँगा जाता है। वैकल्पिक प्रमाण पत्र भी चल सकते हैं।
  5. अंतिम मतदाता सूची कब प्रकाशित होगी?
    विशेष पुनरीक्षण अभियान अगस्त 2025 तक चलेगा और अंतिम मतदाता सूची 15 जनवरी 2026 तक प्रकाशित होने की संभावना है।

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